शिक्षक
शिक्षक दिवस पर …!
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*तुम ही कृष्णा तुम ही राम *
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छैनी और हथौड़ी लेकर ,
मूर्तिकार ज्यों मूर्ति उभारे ।
शिष्यों के कल को शिक्षक ही,
अपने हाथों गढ़े सँवारे।।
तुमको बारम्बार प्रणाम ।
तुम ही कृष्णा तुम ही राम ।।
*
हम गीली मिट्टी के लौंदे ,
जैसे चाहो ढल जाते हैं ।
नहीं मिले संरक्षण तो फिर ,
ढेले जैसे गल जाते हैं ।।
पाषाणों के हम हैं टुकड़े ,
हम में छिपी हुई है मूरत ।
थोड़ा कोई काट-छाँट दे,
दिख जाती है असली सूरत ।।
ठोक पीट कर काट-छाँट कर ,
तुमने ही तो रूप निखारे ।
शिष्यों के कल को शिक्षक ही ,
अपने हाथों गढ़े सँवारे ।।
तुमको बारम्बार प्रणाम ।
तुम ही कृष्णा तुम ही राम ।।
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तुमने ही शिक्षा देकर के ,
उर में दीपक ज्ञान जलाया ।
तुमने ही सत पथ पर हमको ,
हे गुरुवर ! चलना सिखलाया ।।
मोल ज्ञान का नहीं चुकेगा,
जीवन भर के ऋणी हो गये ।
तुमने सिर पर हाथ रखा तो ,
मन के दूषित भाव खो गये ।।
करें वंदना शीश झुका कर,
हम सब प्यारे शिष्य तुम्हारे ।
शिष्यों के कल को शिक्षक ही ,
अपने हाथों गढ़े सँवारे ।।
तुमको बारम्बार प्रणाम ।
तुम ही कृष्णा तुम ही राम ।।
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जिसने गुरु की आज्ञा मानी ,
उसका ही जीवन सँवरा है ।
जीवन की गलियाँ टेढ़ी हैं ,
पथ भी इसका अति सँकरा है ।।
बड़े भाग्य शाली हैं हम सब ,
कृपा आपकी हमने पाई ।
ब्रह्मा विष्णु महेश आप हैं,
रहें आप गुरु सदा सहाई।।
कभी आपने डाँटा भी तो,
कभी प्रेम से सभी दुलारे ।
शिष्यों के कल को शिक्षक ही ,
अपने हाथों गढ़े सँवारे ।।
तुमको बारम्बार प्रणाम ।
तुम ही कृष्णा तुम ही राम ।।
—
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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