” शिक्षक हूँ मैं “
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शिक्षक हूँ मैं ,
हमें सोंच कर उठना है
सोंच कर बैठना है
समाज में हमें, खड़े होने का सलीका भी सीखना है
पग-पग पर देखना है , कोई व्यथित तो नहीं हमसे ,
शक्ति का स्रोत होकर भी , निःशक्ति होकर रहना है ||
समाज के सारे सदाचार हम से होकर गुजरते हैं ,
फिर भी नवाचारों को उत्पन्न करने का दोष हमारा है |
क्योंकि
शिक्षक हूँ मैं
हमें सोंच ………………
अपना तन ,अपना मन, अपना जीवन कुछ भी तो नहीं हमारा है ,
किराये पर लिए मकान सा जीवन हमारा है
कोई बने ,कोई बिगड़े ,कोई शक्ति को चूमे ,
निःशक्ति होकर राह में दर-दर कोई घूमें ,
सारी अपेक्षाओं का मै केंद्र बिंदु हूँ
फिर भी मिले खामी अगर तो
मै ही शीर्ष बिंदु हूँ
क्योंकि
शिक्षक हूँ मै
हमें सोंच कर उठना है
सोंच कर बैठना है ||
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