शिक्षक हमारे देश के
दीप बनकर जल रहे शिक्षक हमारे देश के।
अब अँधेरा दल रहे शिक्षक हमारे देश के।
ताकतें होतीं हैं जिनमें ज्ञान और विज्ञान की,
अब कहाँ निर्बल रहे शिक्षक हमारे देश के।
गैर शिक्षण कार्य भी करते बड़े जो हर्ष से,
आफ़तों के हल रहे शिक्षक हमारे देश के।
हो रहा बदलाव शिक्षण-शैलियों में जिस तरह,
आज उनमें ढल रहे शिक्षक हमारे देश के।
द्रोण विश्वामित्र वेदव्यास और सांदीपनी,
गुरु सृदश निश्छल रहे शिक्षक हमारे देश के।
आचरण जिनका रहा है सादगी-सौहार्द का,
हृदय से निर्मल रहे शिक्षक हमारे देश के।
लाल चंदन की महत्ता है वनों में जिस तरह,
वैसे ही संदल रहे शिक्षक हमारे देश के।
भाऊराव महंत