शिक्षक दिवस
मोहब्बत से सदा लबरेज़ यह उस्ताद होते हैं
किसी भी मुल्को मिल्लत की यही बुनियाद होते हैं।
ये है उस्ताद की शफकत की वो आगे बढ़ाते हैं।
मंजिल पर हो गर शागिर्द कितना शाद होते हैं।
इन्हीं की बागवानी से मुनव्वर है सभी कलियां।
इन्हीं के फैज से सारे चमन आबाद होते हैं।
“सगीर” उस्ताद भी मां बाप के मानिंद हैं मुश्फिक।
नज़र में इनके हर शागिर्द भी औलाद होते हैं।