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5 Sep 2019 · 3 min read

*** शिक्षक ज्ञान की ज्योति **

***शिक्षक***
जीवन कठिन परिश्रम से किया गया तप साधना है ,जो शिक्षक के बिना अधूरा सा है जो ज्ञान स्वयं अर्जित करके दूसरों को शिक्षा प्रदान करता है वही शिक्षक कहलाता है एक दीपक की लौ की तरह जलकर दूसरों को प्रकाशित कर उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाता है
शिक्षक ज्ञान के द्वारा सही मार्गदर्शन में ले जाकर जीवन मे नया मोड़ देते हुए जोश भर देता है जीवन को लक्ष्य की ओर आकर्षित करने के लिए प्रेरित करता रहता है सही गलत दिशाओं का आभास कराते हुए सही मार्गदर्शन देता है।
शिक्षक शब्द अपने आपमें इतना महानता लिए हुए है कि उनकी महिमा का बखान कुछ शब्दों में करना मुश्किल है हर वो इंसान जो हमें जीवन मे अच्छी शिक्षा उच्च विचारों से अवगत कराते रहे ,चाहे वो उम्र में छोटा हो या बड़े बुजुर्ग ही हो वही हमारे असली शिक्षक हैं।
प्रथम स्थान में माता पिता ही शिक्षक हैं उनके दिये हुए संस्कारों के बगैर हम जीवन की कल्पना भी नही कर सकते हैं उनके बदौलत ही हम जीने की संपूर्ण जगत में जीत हासिल कर मंजिल तक पहुँचने में सहायक सिद्ध होते हैं।
दूसरे शिक्षक जो विविध विषयों में पाठ्यक्रमों को परम्परागत विधि से पढ़ाई पूरी करते हुए अलग अलग विधाओं में पारंगत होते हुए लक्ष्य की ओर आकर्षित करते हैं
तीसरा शिक्षक गुरुदेव हैं जिनसे हम गुरु दीक्षा ग्रहण कर खुद ही साक्षात्कार कराते हुए निर्णय लेते हैं ईश्वर से साक्षात दर्शन कर जीवन धन्य बनाते हैं और यह कहा भी जाता है –
” गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय।।
अर्थात – गुरु और गोविंद दोनों ही हमारे समक्ष उपस्थित खड़े हुए हैं और प्रश्न (दुविधा) यह है कि सबसे पहले किसको नमन करें तो गोविंद स्वयं बताते हैं कि गुरु ही सर्वश्रेष्ठ हैं पूज्यनीय हैं गुरु ही गोविंद से मिलाते हैं उनके ज्ञान के द्वारा ही संपूर्ण जगत का विकास निर्भर करता है
अर्थात यह भी कहा जा सकता है कि शिक्षक के ज्ञान को अर्जित करने के बाद अहंकार के प्रपंचो में ना उलझ कर अपने शिक्षक या गुरु के आदेशों का पालन करना चाहिए और अज्ञान को दूर करने के लिए नित नई ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रेरणा देता है।
” अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानजन शलाकया
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः”
अर्थात अज्ञान रूपी अंधेरे से दृष्टिहीन हुए लोगों को ज्ञान रूपी अंजन से जो दृष्टि प्रदान करे ऐसे गुरू को शत शत नमन …..! ! !
गीता में यह भी लिखा गया है –
“जिस व्यक्ति के शीश (सिर) पर गुरू का आशीर्वाद प्राप्त हो उसके कार्य स्वयं सिद्ध हो जाते हैं”
शिक्षक का ज्ञान सागर के जल के समान है इसे हम जितना अधिक मात्रा में ग्रहण करेंगे उतना ही कम है इस ज्ञानार्जन को अर्पित करते हुए उनके आदर्शों का पालन करना हमारा परम कर्त्तव्य है।
शिक्षक के बदौलत हम आज यहाँ तक पहुँचे हैं उनकी दी गई शिक्षा से हमने नवीन जीने की कलाएँ सीखी है और शिक्षक ही हमारे पूज्यनीय हैं जो विविध विषयों पर पारंगत तरीकों से एक अच्छा इंसान बनने नेक कार्यों को करने के लिए प्रेरणा स्त्रोत का जरिया माध्यम बनाया गया है।
*शशिकला व्यास *

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 315 Views
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