*शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ*
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ
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शिक्षा का दीपक जलाते हैँ,
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
कैसी भी चाहे हवा चले,
मनचाही उस में हवा भरें,
हर मंजिल पार लगाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
कलियों से है फूल बनाते,
सुन्दर बगिया को महकाते,
औझल हो कर खो जाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
रंग – बिरंगे जो रंग भरते,
जीने का रंग – ढंग बदलते,
जीवन की राह दिखाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैं।
छाया हो जहाँ घोर अँधेरा,
रोशन कर देते हर घेरा,
ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
मन में फैली दुविधा भारी,
हल कर दें जो हर बीमारी,
दरिया जा पार लंघाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
मनसीरत शैक्षिक सेवकाई,
कहीं नहीं मिलती है बड़ाई,
हर्षोंन्माद फूल बरसाते हैँ।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
शिक्षा का दीपक जलाते है।
शिक्षक जुगनू बन जाते हैँ।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)