**शिक्षक जीवन** अतीत- वर्तमान- भविष्य
०५ सितंबर २०२० – वार – शनिवार
“गुरुजी दे दो ऐसा ज्ञान कि मैं बन जाऊं विप्र महान”
** दोहा**
गुरु वचन गंभीर है उन पर देना ध्यान ।
सीख जिनको भली लगे जग में पाए सम्मान ।।
*शिक्षक वह अक्ष है जिसके कक्ष में ज्ञान की संपूर्ण धूरी चक्कर लगाती है *
आज शिक्षक पर्व पर कोटि गुरुओं को नमन। यह लेख लिखते हुए आज प्रसन्नता भी झलक रही है। क्योंकि पिछले 25 वर्षों से मैं भी एक शिक्षक की भूमिका में समाज के बीच खड़ा हूं।
15 जनवरी 1996 से आज 5 जून 2020 तक अनवरत शिक्षा के बदलते स्वरूप रूप रेखाओं के साथ छात्र छात्राओं के बीच हूं।
जब प्रथम बार मैंने मातृ संस्था सरस्वती शिशु मंदिर पिपलिया कुलमी में अध्यापन हेतु कदम रखा तो वह दिन मेरे जीवन का मोड सिद्ध हुआ, और मैंने शिक्षक जीवन अपना लिया।
इतना लंबा शैक्षणिक जीवन जिसमें कई उतार-चढ़ाव आए ।कई विद्यार्थी टकराए ।हमारे मन में उन जाने-अनजाने विद्यार्थियों के लिए एक ही भाव रहा, सबको मंजिल मिल जाए।
शासकीय ना सही अशासकीय हूं पर हूं तो एक शिक्षक !!!शिक्षक एक शब्द नहीं कोई उपमा नहीं शिक्षक तो वह साक्षात ईश्वर का अंश है जो पथिक को गंतव्य तक पहुंचाता है .।जहां-जहां भी मैंने पढ़ाया या पढ़ा रहा हूं उसे मैंने मंदिर की संज्ञा दी ।
बालक बालिका मेरे भगवान रहे और मैं उनका पुजारी बन सेवा करता रहा ,कर रहा हूं।
शिक्षक कोई सामान्य उपाधि नहीं तुलसी जैसे महाकवि ने रामायण महाकाव्य में ईश से पूर्व गुरु का वंदन किया ।
ऐसा कौन हुआ है जिसने गुरु के गुरुत्व को नमस्कार ना किया हो।
अतीत में जाएंगे तो विश्वामित्र सांदीपनि जैसे असंख्य गुरुओं के दर्शन पाएंगे ।
वर्तमान में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे आदर्श बन जाएंगे।
और भविष्य, भविष्य की रचना के लिए भी विधाता ने किसी को चुन ही रखा होगा।
लेख को लंबा ना ले जाते हुए इसके मूल में आते हैं, आज के बदलते परिवेश में समाज को ऐसे गुरुओं की नितांत आवश्यकता है जो भटकते जीवन को पुनः पटरी पर ले आएं ।संस्कृति संस्कार आचार विचार एवं राष्ट्र रक्षार्थ आज के गुरुओं को सबसे हटके सबसे बचके नव निर्माण करना होगा ।यह कब होगा ?जब शिक्षक अपने लिए नहीं समाज के लिए जिए तो देश के उन असंख्य कोटि शिक्षकों को प्रणाम करते हुए आव्हान करता हूं-
आओ ज्ञान के दाता
जन-जन के भाग्य विधाता।
जूट जाएं हम सब मिलकर
समाज ही हमारा नाता।।
यह जो अपनी भारत माता
जगतगुरु कहलाती है।
आओ इसको फिर से सिचे
हम सब को यह बुलाती है।।
जब तक संकल्प न पूरा होवे
कर्म ना हमें थकाता
अनुनय मेरे मन का तार तो
यही स्वर लहराता।।
जय गुरुदेव जय गुरुदेव जय गुरुदेव
राजेश व्यास अनुनय