शिक्षक को न सताइए
शिक्षक को अधिकार ना,
हुआ आज मजबूर।
अब तो हमसे भी यहाँ,
अच्छा है मजदूर।।
कौन यहाँ आता भला,
करके नियमित शोर।
शिक्षक की घंटी बजे,
सुबह शाम चहुंओर।।
शिक्षक ना अपराधी है,
ना शिक्षक मुँहचोर।
है शिक्षक ने बाँध रखा,
मर्यादा की डोर।।
शिक्षक को ही डाँटते,
अधिकारी मुँहजोर।
चौबीस घंटे खट रहा,
शिक्षक बन कमजोर।।
कम्प्यूटर सा मानकर,
फरमाते आदेश।
घंटों की गिनती नहीं,
देते नित उपदेश।।
एक साथ कैसे चले,
है कक्षा कुल पांच।
वहाँ एक ही शिक्षक है,
बात यही है सांच।।
निपुण लक्ष्य को हो रहा,
नियमित ही अभ्यास।
शिक्षक एक भले यहाँ,
है फिर भी यह आस।।
शिक्षक इक कैसे करे,
चौदह घंटे काम।
जबकि उसको हैं मिले,
छः घंटे अविराम।।
तीन कक्ष हैं भाषा के,
दो घंटे प्रत्येक।
गणित विषय भी चाहता,
दो घंटे ही नेक।।
इसी माह अप्रैल में,
चलता रेडीनेस।
दो से ढाई घंटे तक,
कक्षा मांगे एक।।
छः घंटे भाषा की खातिर,
छः घंटे का मैथ।
दो घंटे का रेडीनेस,
बना दिया है कैथ।।
है बेचारा ढो रहा,
आदेशों का बोझ।
अधिकारी ना देखते,
नजर उठा के सोझ।।
जाने हम किस पाप की,
सजा भोगते आज।
ना कोई गरिमा रही,
ना अब कोई नाज।।
शिक्षक को न सताइए,
सुन लीजै सरकार।
बिन शिक्षक होता नहीं,
सपना भी साकार।।
शिक्षक बस शिक्षण करें,
मिले न दूजा काम।
शिक्षक की गरिमा बढ़े,
बढ़े देश अविराम।।
✍️जटाशंकर”जटा”
25/04/2023