शिक्षक की अभिलाषा
कलम स्लेट हाथों में लेकर लिखना रोज सिखाऊंगा।
झूम झूम कर घूम घूम कर सबको पाठ पढ़ाऊँगा ।।
जीवन सारा करूं समर्पित बच्चों को सिखलाने में ।
ध्येयहीन जीवन का मतलब क्या है फिर बतलाने में।।
बच्चें गायेंगे गाना भी नाच नाच कर सीखेंगे ।
उल्टा पुल्टा आड़ा तिरछा करके सीधा लिक्खेंगे।।
मन के कोरे कागज पर भारत की तस्वीर बनाऊँगा।
भारत की भावी मूरत को अपने हाथ सजाऊंगा।।
हर बच्चे के मानस पट पर भारत मां का चित्र बने।
जाति पांति के भेद भाव को छोड़ सभी के मित्र बने।।
कितना अच्छा अवसर, ईश्वर ने वरदान दिया है ये।
सत्य जानलो ऊपर वाले ने एहसान किया है ये।।
कठिन डगर है डिग न पाये डग तेरा मेरे साथी।
सोच समझकर मजबूती से पग रखना जैसे हाथी।।
कसम रोज खाकरके कहना निर्मल न्याय करूंगा मैं।
आदर्श संहिता और मर्यादा का पर्याय बनूँगा मैं।।
दुनिया की फुलवारी न्यारी मेरी जिम्मेदारी है।
सींच-२ कर इस धरती की सुरभित करना क्यारी है।।
मेरी शाला के परिसर में सुन्दर बाग़ बगीचा हो।
सब्जी भाजी की क्यारी का सुन्दर एक गलीचा हो।।
भोजन की शुचिता के ऊपर हम सब ध्यान धरेंगे भी।
साथ बैठकर शांतभाव से, भोजन ग्रहण करेंगे भी।।
एक समान वेशभूषा हो ऊंच नींच का भेद नहीं।
ओजोन परत में,समरसता की होने देंगे छेद नहीं।।
शाला मेरी बच्चे मेरे दुनिया भर में अच्छे हो ।
महके जिनकी खुशबू जग में सुन्दर से गुलदस्ते हो।।
मेरी शाला के बच्चे ही मेरा सकल जहान है।
इनके हाथों से लिक्खूँगा हिंदुस्तान महान है।।