शिकारी संस्कृति के
राम को राम और खुदा को खुदा रहने दो।
दोनो अलग संस्कृति है इन्हे जुदा रहने दो।।
मत वृद्धि के खातिर इन्हे तुम मत मिलाओ।
राम व खुदा को तुम रामखुदाई मत बनाओ।।
वेद कुरान पृथक है, इनका मत तुम मेल करो।
संविधान क्षणभंगुर है इतना बड़ा न खेल करो।।
है जिनको विश्वास सदा, लौकिक और अलौकिक में।
पुनर्जन्म में हो निष्ठित जो, वेद पुराण वा मौलिक में।।
सिख जैन और बौद्ध सभी, संस्कृति सागर के बिंदु हैं।
गौ गंगा गुरु पूज्य जो माने, वो वैदिकजन ही हिंदू है।।
मैं ही हूं और केवल मैं ही हूं, ऐसा इस्लाम सिखाता हैं।
संख्या वृद्धि है मूलमंत्र इसका ऐसा ही कुरान बताता है।।
राज है करना धर्म काज बस, छल बल और तलवारों से।
मानव जीवन का मोल नहीं,खुदा प्रतिष्ठित है हथियारों से।।
संविधान तो एक खिचड़ी है, इसका मूल भरण पोषण है।
सौ से अधिक बार बदले तुम, इसमें प्रतिभा का शोषण है।।
मत की खातिर इसे बदलते, इसमें क्या कोई मौलिकता है।
साम्यवाद, समाजवाद सब, धर्म से केवल छल दिखता है।।
हे छद्मवाद के जननायक, तेरा उद्देश्य तो राज है करना।
क्या ” संजय” राजनीति में, संस्कृतियों को पड़ेगा मरना ।।