शिकायत
ज़रा कह दो उन्हें जाकर जो ख़्वाबों में सताते हैं।
भुलाना उनको नामुमकिन जो सांसों में समाते हैं।।
कसम दी थीं उन्होंने की नहीं आयेंगे उनके घर।
जगाकर हमको रातों में वो हमसे बात करते हैं।।
खता तेरी थी ना मेरी थी किस्मत का तकाज़ा था।
तेरी अजमत ही करते हैं शिकायत भूल जाते हैं।।
ज़माने भर की जिल्लत को दिल में कैद रक्खें हैं।
कोई शिकवा नहीं तुझसे तुझे ही याद करते हैं।।
खता क्या है मेरी हमदम आकर के बताती जा।
झुका सिर जब इबादत में मुकाविल तुझको पाते हैं।।
जरा कह दो उन्हे जाकर जो ख्वाबों में सताते हैं।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)
9479611151