शिकवा
मैं क्या करूं
और क्या नहीं
मुझे यही तो
पता नहीं…
(1)
तुम अपना
सकते हो मुझे
माना कि
बहुत भला नहीं…
(२)
लेकिन जितना
सोचते हो तुम
मैं उतना भी
बुरा नहीं…
(३)
थोड़ा दुःखी
बेशक हूं मैं
लेकिन तुझसे
खफा नहीं…
(४)
जो ख़त्म हो
किसी हाल में
कुछ भी हो वह
वफ़ा नहीं…
(५)
लगता है
आसमान तक
पहुंची मेरी
दुआ नहीं…
(६)
वर्ना तू ही
बता ऐ दिल
किस दर्द की
दवा नहीं…
(७)
दूर बहुत
तू है मुझसे
लेकिन मुझसे
जुदा नहीं…
(८)
माना थोड़ा
गुस्ताख़ हूं
लेकिन आदमी
मैं बुरा नहीं…
(९)
सुन सके तो
सुन ले मेरी
फिर मत कहना
कि कहा नहीं…
(१०)
या तो मेरा दर्द
दूर कर
या फिर कह दे
तू ख़ुदा नहीं…
(११)
भूलें हो ही
जाती हैं
आदमी हूं मैं
ख़ुदा नहीं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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