शिकवा
किस बात का है शिकवा ना पूछ,
मेरे मौला मुझसे यह सवाल ना पूछ।
कैसे बनते हैं फूल, कलीयांँ गुलाब की,
यह राज़ मुझसे, मेरे ऐ दोसत ना पूछ।
जितने उसताद थे, सब गुज़र चुके,
बैठें हैं कयूँ हम, दरीयांँ बीछाऐ ना पूछ।
पेश ऐ नज़र है, ईनतहा मेरे पागल-पन की,
मुझ सिर फिरे से, किसा ईस ज़हाँ का ना पूछ।
फूलों का रिशता बाग से, है नहीं मुमंकीन,
केसर की मंद-मंद खुशबू, बहती हवा से ना पूछ।
करो रेहम मेरी जेब पर, मेरे दोसतों,
कयूंँ चलती है मेरी उसकी गली में, मुझसे यह ना पुछ।
रहता नहीं समय ऐक सा,
उस वकत गुज़रती है कया, ना पुछ।
दो चेहरे हर ईनसान के, ईक दिखावा दुजा फरेब,
ईनसानीयत के लिए फिर भी, तरसता कयूँ हुँ, ना पुछ।
गम तेरे होने या ना होने का नहीं मगर,
सबक दुनियाँ ने कया दिया है ऐ खुदा ना पुछ।
कयुँ “साही” शिकवा करता है,
कैह दे कोई उससे, हाल मुझ गरीब का ना पुछ।