शाश्वत सत्य की कलम से।
वैराग्य का भी अपना हीं मजा है,
ना किसी के आने की सदा है,
ना किसी के जाने की सज़ा है।
जीवन को उस पार ले जाना भी इक अदा है,
जिस किश्ती की पतवार चलाना है,
अंततः उसे भी यहीं छोड़ जाना है।
किस्मत और लकीरें तो बस उसकी रज़ा हैं,
हमें तो बस कोशिशें करते जाना है,
और उसे बस अपना हीं खेल दिखाना है।
आंसुओं की तकदीर में कहाँ कोई ठिकाना है,
जिन आंखों में मोहब्बत बन उतरे,
उसे भी बस दो पल में पलकों से गिराना है।
लहरों के नसीब में भी क्या मुकम्मल सफर लिखा है,
मीलों की दूरी तय करने के बाद भी,
किनारों पर मौत की सज़ा है।
वो टूटता तारा भी कितनों की उम्मीदों का भार लिए खड़ा है,
जिसे बस दो घड़ी मुस्कुराना है,
फिर अंधेरे की गोद में अपना अस्तित्व गंवाना है।