शारीरिक विधा में मन की स्थितः
विधा होती क्रियान्वयन समय में,
तब कैसे होती मन की विधिता।
कुछ समय के लिए रुक जाओ,
शरीर दिमाग की उर्जा चार्ज हो जायेगी।
कार्य स्थिति यदि अब्यवस्थित विधा में,
तो वातावरण की उर्जा समाप्त कर देती।
कार्य क्षमता यदि कम स्थित में होती तो,
रचनात्मक उर्जा तब अवरुद्ध हो जाती।
शुद्ध वातावरण की स्थिति में,
वह स्पष्टता,एकाग्रता,प्रोडिक्टता देती।
लेकिन ब्यवस्थित विधा पर-
वह किताब कागज का उपयोग नहीं करते।
बिना जरुरत के उसे हटा दो,
तथा अपनी संस्कृति को ब्यवस्थित रखो।
ऐसी चीजें रखकर अपनाओ
जो आपको खुशी देती हों।
खुशी विधा से स्थिति बनाओ,
तभी अंतर् भावों में वाइब्रेशन होता,
अब्यवस्थित विधाएं और द्रष्टता से,
आती नकारात्मकता जो असंस्कृति देती।
वैचारिक नैतिक संस्कृति ही,
वैचारिक विधा को सम्ब्रद्ध कर देती।
जीवन का मौलिक योग ही
तन-मनसंस्कृतिकोआनन्दित सजीवित रखती