शारीरिक भाषा (बाॅडी लेंग्वेज)
शारीरिक भाषा (बाॅडी लेंग्वेज)
‘भाषा’ अर्थात् वह प्रक्रिया जिससे हम एक दूसरे से अपनी बातों का आदान-प्रदान करते हैं । भाषाएँ कई प्रकार की होती है, ये हम सब भली भांति जानते हैं । जैसे राष्ट्रीय भाषा, क्षेत्रीय भाषा, मातृ भाषा, विदेशी भाषा आदि, ये ऐसी भाषाएँ हैं, जिसे हम शब्दों से प्रकट करते हैं और आम बोलचाल में प्रयोग करते हैं ।
किन्तु कुछ भाषाएँ मूक होती है, जो शब्दों में नहीं कही जाती है । जैसे आँखों की भाषा, शारीरिक हाव-भाव की भाषा जिसे लोग बाॅडी लेंग्वेज कहते हैं ।
आँखों की भाषा को ईशारा कहना पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि बिना ईशारे के भी आंखों से खुशी, दर्द, उदासी, आश्चर्य, भय आदि भाव को पढ़ा जा सकता है । इसलिए ये कहना कोई गलत नहीं होगा कि आंखें बोलती है ।
आँखों की तरह हमारे शरीर की भी भाषा है जो उसके हाव-भाव से प्रकट होता है ।
यदि हमारे मन में किसी के प्रति प्रेम, द्वेष, आक्रोश, घृणा आदि जो भी होता है, शरीर अपने हाव-भाव से स्वतः ही जाहिर कर देता है । शब्दों से इन भावों को छुपाया जा सकता है, किन्तु शारीरिक भाषा इसका भेद भी खोल सकता है । हमारा शरीर मन या दिमाग पर निर्भर है । चेतन और अवचेतन मन हमारे शरीर को चलायमान रखता है ।
हमारे शब्दों पर भी इसी का आधिपत्य है ।
इसलिए हम कई बार अपने शब्दों पर अंकुश लगा लेते हैं, किन्तु शारीरिक हाव-भाव पर लगाना कठिन होता है । यही शारीरिक भाषा बहुत कुछ बयां कर देती है । कुछ लोग इसे समझ लेते हैं और कुछ लोग नहीं समझ पाते हैं ।
लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो शारीरिक हाव-भाव से मन के भाव को प्रकट नहीं होने देते । ऐसे लोग अक्सर शातिर दिमाग वाले होते हैं ।
फिर भी भाषा तो भाषा ही है वो शब्दों की हो, आँखों की हो या शारीरिक हो, जिसे हम समझ सकते हैं ।
–पूनम झा ‘प्रथमा’
कोटा,राजस्थान
Mob-Wats – 9414875654