शायर
झूठे शाइर ये ग़ौर से सुन लें।
शायरी सब के बस की बात नहीं
ये वो इल्हाम है के जिस के लिए
रब ही चुनता है अपने बंदों में
ऐसे बंदों को जिन के सीने में
दर्द होता है सारे आलम का
जो मोहब्बत की बात करते हैं।
जो उख़ूवत की बात करते हैं।
जो सदाक़त की बात करते हैं।
ज़ुल्म के सामने खड़े हो कर,
जो बग़ावत की बात करते हैं।
मुफलिसों और ग़म के मारों की
जो हिमायत की बात करते हैं।
ना उमिदि के घुप अंधेरों में
जो दिए आस के जलाते हैं।
बुग़्ज़ रखते नहीं जो सीने में
दुश्मनों को गले लगाते हैं।
सारे आलम में अम्न की ख़ातिर
रात दिन खून ए दिल जलाते हैं।
जिन को शोहरत की आस होती नहीं
जिन को दौलत की आस होती नहीं
शान ओ शौक़त की आस होती नहीं
जो क़लन्दर की तरह जीते हैं।
जो फ़क़ीरों की तरह रह कर भी
बादशाहों की तरह जीते हैं।
झूठे शाइर ये ग़ौर से सुन लें।
शायर ए बे नवा के सीने पर
शेर उतरते हैं आयतो की तरह।