शायर तो नहीं
शायर तो नहीँ जो लिख दूँ कोई मीठी सी गज़ल।
न माली किसी बाग का
कर दूं खडी सब्ज़ पौधौं की फसल।।शायर तो नहीँ….
गमे ज़िंदगी मे उलझे हैं सभी,
कैसे संवारे कोई आने वाली नसल?शायर तो नहीं….
रोक लो अब कतारैं बच्चों की
दो ही काफी हैं,इक गुलाब एक कमल।।शायर तो नहीँ….
परवरिश जो पूरी मिले,तो यही दमकैंगे ज्यूँ संगमरमरी ताज महल।।शायर तो नही….
मुफलिसी और गरीबी को हटाओ,
ताकि कोई मुल्क आगे जाए न निकल।।शायर तो नहीँ…
सिर्फ तीर-ए-अल्फाज़ से कैसे तराशूं इन पत्थर के बुतों की अकल?
शायर तो नहीं….