शायरी
फैले हैं क़तरे ओस के घर में
रोया हूं मन मसोस के घर में
मैंने पलकें बिछाई थीं लेकिन
चांद उतरा पड़ोस के घर में
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
फैले हैं क़तरे ओस के घर में
रोया हूं मन मसोस के घर में
मैंने पलकें बिछाई थीं लेकिन
चांद उतरा पड़ोस के घर में
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur