साथ अपनों का छूटता गया
साथ अपनों का कुछ ऐसे छूटता गया
बातों का सिलसिला जब धीरे-धीरे खत्म होता गया
खुशियों की गलियों में भी सन्नाटा छाता गया
एक वक़्त ऐसा आया फ़िर…,
कि सामने से गुज़रकर भी
एक दूसरे का हाल पूछना भी बंद हो गया।
— सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार