शायरी 2
तेरी ये जुल्फ़ें, तेरी ये नज़रें,
मेरे तसव्वुर में सिर्फ़ तू है।
कहाँ है, तेरा पता नहीं है ,
मुझे तो बस तेरी जुस्तजू है।
यक़ीं भले ही तुम्हें ना हो पर,
मेरा तबस्सुम है तेरी ख़ातिर।
पता नहीं हाले-दिल का, क्या है?
मगर नज़र से तो गुफ़्तगू है।।
— सूर्या