शायरी
वो महफ़िल नहीं कुछ काम की, जहाँ तेरा जिक्र न हो
में बैठा रहू यहाँ बेखबर और तेरी मुझ को फ़िक्र न हो
ऐसा तो दिल नहीं मेरा , कि इस दिल से खेला जाये
ठोकर लगे तुझ को जरा सी, और मेरे सीने में हलचल न हो जाये !!
अकेले चलने का अंदाज , मैने खुद ही पाया है
रूकना और रूक के फिर बढ़ना, खुद को सिखाया है
तूफानों का काम है, कि रोक दो रास्ता सभी का
मैने तो तूफानों के बीच से अपना रास्ता बनाया है !!
अजीत