— शायरी —
“कोयले” की ख़दान में…
हीरे के मानिंद ,
दबे घुटे जिये जाते हैं हम,!
इक पारखी निगाह चाहिए
तराशने के लिए..-!!
“तू” “आदत” -… सी बन गया है,
वक्त की “रफ़्तार” नहीं,
जो ,उम्र के साथ “दराज़” तो होती है,
मगर छूटती नहीं, !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ