शायरी
अपना ईमान बेचकर खरीदा था तेरी मोहब्बत को,
मुफलिसी ऐसी चली की कोई खरीदार ना मिला मेरी मोहब्बत को ।
हम बेवफा कैसे कह दे तुझको तेरी भी कोई मजबूरी
होगी,
वरना लोग कहेंगे कि हमने बदनाम कर दिया मोहब्बत को।
हमने अपने दिल के आइने में तेरी तस्वीर बना रखी थी,
कोई चुरा ना ले तुझको मुझसे अपनी तकदीर छिपा रखी थी।
हमने देखा था दिल चुराने वाले को भरे बाज़ार में घूमते,
सच मानो बड़े बेजार से थे हम दिल चुरा ना ले कोई इसलिए नजरे झुका रखी थी ।
हम पर्वतो सी पीर को भी सह जाएंगे,
तुम मुस्कराके तो देखो हम सवर जाएंगे।
दिल लगाया था हमने तुम्हे अपना जानकर,
दिल तोड़ो ना मेरा हम कांच सा बिखर जाएंगे।
ग़ज़ल बनकर जिन्हें हम गुनगुनाते रहे,
वो मंजिलों पर भी मेरी मुस्कराते रहे।
उनके माथे पर एक शिकन तक ना थी,
और मेरी मंजिलों के कारवां गुजरते रहे।
आप हो कि फुर्सत नहीं और
हमें देखो बात करने के लिए बेचैन है
सच कहा है किसी ने अक्सर अकेले वही रह जाते हैं
जो दूसरों में अपना अक्स ढूंढते हैं ।
****सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी) ****