शायरी
हर शाम परिंदों को चह-चहाते देखा है,
मैंने लोगों को पैसे के लिए जान लुटाते देखा है,
फिर कहां किसी को मोहब्बत की तस्वीर अच्छी लगी,
जिसने भी मां को यूं खिलखिलाते देखा है।
हर शाम परिंदों को चह-चहाते देखा है,
मैंने लोगों को पैसे के लिए जान लुटाते देखा है,
फिर कहां किसी को मोहब्बत की तस्वीर अच्छी लगी,
जिसने भी मां को यूं खिलखिलाते देखा है।