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31 Jan 2024 · 1 min read

शायरी – ग़ज़ल – संदीप ठाकुर

इश्क़-विश्क़ की डिग्री-विग्री थ्योरी व्योरी सब
पढ़ डाले हैं लैला-मजनू चाँद-चकोरी सब

रूठा था मै बहुत दिनों से मान गया लेकिन
कान पकड़ कर जब वो बोली सोरी-वोरी सब

कब लौटोगी पूछ रहे हैं आज रसोई से
चूल्हा-वूल्हा मिक्सी-विक्सी थाल-कटोरी सब

मटकी-वटकी दरिया-वरिया राह तकें कब तक
बूढ़े हो गए पनघट-वनघट गोरी-वोरी सब

इश्क़ जंग है और जंग में जायज़ है सब कुछ
धोका-वोका मान मुनव्वल जोरा-जोरी सब

संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur

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