शायरी – ग़ज़ल – संदीप ठाकुर
इश्क़-विश्क़ की डिग्री-विग्री थ्योरी व्योरी सब
पढ़ डाले हैं लैला-मजनू चाँद-चकोरी सब
रूठा था मै बहुत दिनों से मान गया लेकिन
कान पकड़ कर जब वो बोली सोरी-वोरी सब
कब लौटोगी पूछ रहे हैं आज रसोई से
चूल्हा-वूल्हा मिक्सी-विक्सी थाल-कटोरी सब
मटकी-वटकी दरिया-वरिया राह तकें कब तक
बूढ़े हो गए पनघट-वनघट गोरी-वोरी सब
इश्क़ जंग है और जंग में जायज़ है सब कुछ
धोका-वोका मान मुनव्वल जोरा-जोरी सब
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur