हैं सितारे डरे-डरे फिर से – संदीप ठाकुर
हैं सितारे डरे-डरे फिर से
रात साज़िश न कुछ करे फिर से
सब इशारे हैं बाढ़ आने के
बदले दरिया ने पैंतरे फिर से
जिस्म पे काई जम रही है या
ज़ख़्म होने लगे हरे फिर से
तुम नहीं थे तो राह ने पूछा
तू अकेला इधर अरे फिर से
फिर नए हाथ की छुअन लब पर
नर्म बाँहों के दायरे फिर से
ऐसे बोलो न टोक कर कोई
लब पे उँगली मिरे धरे फिर से
संदीप ठाकुर
Sundeep Thakur