शायरी – ग़ज़ल – संदीप ठाकुर
आप चाहें मारो ठोकर डोर को फुट-मैट को
पड़ गई है आपकी आदत हमारे फ्लैट को
गिफ़्ट की थी बर्थ-डे पर जो तुम्हें मैंने कभी
चाँद पहने घूमता है रात-भर उस हैट को
कुछ इमोजी वॉलपेपर पर पड़े रह जायेंगे
फोन से जितना मिटा लो चाहें मेरी चैट को
इक मुसलसल कश्मकश में हूँ बिछड़ कर आज तक
भूल पाया हूँ कहाँ अब तक तिरी दिस-दैट को
याद में उभरे न फिर वो डूबता सूरज कभी
भूल जा उस शाम को हिल-टाॅप को सन-सैट को
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur