शायद हम
?शायद हम?
मैं चाहता हूं तुम्हें
इसीलिए तो कोशिश किया करता हूं, कि तुम्हें कभी दुख ना हो !
पर क्या करूं ..
यह चाहत ही मेरी
कभी-कभी
तुम्हारे दुख का कारण बन जाती है!!
मेरी चाहत आसमान से ऊंची
सूर्य से दूर
धड़कन के नजदीक
दिल के जैसी है,
जिसे जब चाहो तुम छूकर महसूस कर सकती हो !!
पर
कभी-कभी
तुम्हारी नफरत
मेरी चाहत से
दूर इतनी कि तुम उसे कभी छू नहीं सकती
बल्कि छूने की कोशिश में तुम खुद जल जाओगी
या फिर
एक दिन मेरी तरह
मेरे चक्कर लगाओगी!!
उस समय यह चक्कर तुम्हारे कभी खत्म नहीं होंगे,,
मेरी चाहत का सूर्य तो वही होगा
पर तुम्हारी पृथ्वी के दिन कभी कम नहीं होंगे !
प्रेम तो होगा दोनों के दिलों में,
लेकिन …
दिलों के बीच के अंतर
कभी सम नहीं होंगे !!
उस दिन शायद हम कभी
एक नहीं होंगे …..
एक नहीं होंगे …..
✍चौधरी कृष्णकांत लोधी (के के वर्मा बसुरिया )नरसिंहपुर मध्य प्रदेश