शायद वो सारे हसीन लम्हे अब कहीं खो से गए…
शायद वो सारे हसीन लम्हे अब कहीं खो से गए…
आते थे वे पास और देखते थे सपने हम नए-नए!
वक़्त वो भी था जब हमारे जज़्बात मुस्कुराते थे…
उलझकर मसाफ़े-ज़ीस्त में आज हम बेख़बर से हुए!
…. अजित कर्ण ✍️
शायद वो सारे हसीन लम्हे अब कहीं खो से गए…
आते थे वे पास और देखते थे सपने हम नए-नए!
वक़्त वो भी था जब हमारे जज़्बात मुस्कुराते थे…
उलझकर मसाफ़े-ज़ीस्त में आज हम बेख़बर से हुए!
…. अजित कर्ण ✍️