शायद खोना अच्छा है,
शायद खोना अच्छा है,
खो जाना मंजिल की तलाश में,खो जाना बढ़ते कदमों के साथ में,
खोना पहाड़ों की ऊँचाईयों में,खोना सागर की गहराईयों में,
खोना सुन्दर सी चहचहाती सुबह में,खोना दिलकश चांद की पनाह में,
खो जाना चाहूं मैं, बस खो जाना चाहूं,
कोई जगह जहां बस मैं और मेरी हँसती हुई आंखे हो,
नजारे हो कुदरत के, रोज प्रकृत्ति की करामातें हो,
ना कोई गन्दा नाला हो, ना जहरीली हवाओं से मुलाकातें हो,
सारे जीव-जंतु भी मस्त हो, बदलती जलवायु की वज़ह से ना कोई विलुप्त हो,
बढ़ती गर्मी और सर्दी जिस जगह ना डराती हो,
जो पृथ्वी प्रदूषित ग्रह ना कहलाती हो,
पर वास्तव में तो ये कल्पना मात्र है,और हम सब इसे देखते हुए बस हसीं के पात्र हैं,
कोई और कर लेगा कह कर आगे बढ़ते हुए हम,सब बराबर के हिस्सेदार है पृथ्वी को गन्दा करने में,कोई नहीं है कम,
अफसोस की बात तो ये है कमर तक छली कर दिया हमने इस पृथ्वी को फिर भी हमे नहीं है कोई ग़म,
अब भी सुधर जाओ, या इतना प्रदुषण फैला चुके हों उसे ठीक करने के लिए लोगे अगला जन्म,
सम्भल जाओ अब तो, सोच समझ कर उठाओ कदम.