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22 Jun 2017 · 1 min read

शाम न हो जाए…

आ लौट चले बसेरे पर अपने सुर्ख शाम न हो जाए!
उन्नींदी आँखों में तेरी परछाई फिर आम न हो जाए!
.
जाना है दूर तलक अभी
कुछ पल ठहरते हैं एक और जाम न हो जाए!

.
दुर्गम रास्ते है अपनी मंजिल के
बेबस होती नजरों में अल्पविराम न हो जाए!
.
सीखना है ठोकरों से अब
तुम्हारी दी हर नायाब नसीहत नाकाम न हो जाए
.

जुड़े हो जीवन से इस कदर साथी
हँसते चेहरे पर कोई गुमान न हो जाए!
.
चलता रहे सफर ज़िन्दगी का
बारिश की बूँदों में आखिरी शाम न हो जाए!
.
शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)

2 Comments · 479 Views
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