शाम न हो जाए…
आ लौट चले बसेरे पर अपने सुर्ख शाम न हो जाए!
उन्नींदी आँखों में तेरी परछाई फिर आम न हो जाए!
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जाना है दूर तलक अभी
कुछ पल ठहरते हैं एक और जाम न हो जाए!
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दुर्गम रास्ते है अपनी मंजिल के
बेबस होती नजरों में अल्पविराम न हो जाए!
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सीखना है ठोकरों से अब
तुम्हारी दी हर नायाब नसीहत नाकाम न हो जाए
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जुड़े हो जीवन से इस कदर साथी
हँसते चेहरे पर कोई गुमान न हो जाए!
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चलता रहे सफर ज़िन्दगी का
बारिश की बूँदों में आखिरी शाम न हो जाए!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)