Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Feb 2022 · 1 min read

शाम ढल गई

लघुकथा .
और शाम ढल गई(पत्रशैली)
प्रिय सखी,
तुम हरदम जानना चाहती थी ना कि हँसते हुये भी मेरी आँखों में अनकही उदासी क्यूँ है?बात करते करते कहीं खो क्यूँ जाती हूँ?मैं हँस कर टाल देती थी।किसे सुनाती ,कौन समझता?
न जाने क्यूँ आज सब बताने का मन किया।सुन..
जीवन में जब आप समर्पित हो जाते हो तो मन में कोई विकलता नहीं होती।पर जिसको समर्पण हुये वो कद्र न करे तो खुद के साथ धोखा ही हुआ न ।एक आस,एक उम्मीद पर वर्षों जीते चले जाना और जब जब अवसर आया स्वप्न पूर्ण होने का तब तब किस्मत खेल खेल गई।हादसे दर हादसे, चोट पर चोट अंदर से खोखला करती गई।मेरे साथही क्यूँ ये प्रश्न हर बार मथता गया।कोई न समझ सका मेरी पीड़ा,तकलीफ।कलम और कोरे कागज माध्यम बने मेरी पीड़ा की अभिव्यक्ति के ।मेरे अनकहे दर्द के साथी।एक सुकून ,राहत महसूस हुई।बढ़ गयी इसी तरफ। और जब यहाँ मुकाम आया तो जैसे किस्मत ताक ही रही थी।वज्रपात…..नहीं जायेगी ..कैसा सम्मान ,क्यूँ है इतनी पढ़ी-लिखी।….हर तरफ से ना उम्मीद ।निराशा …।
ढ़लती शाम अपने साथ चाँद की चाँदनी लाती है।पर लगता है मेरे जीवन की शाम जो ढलने चली है उसमें कोई रोशनी नहीं कभी नहीं होगी।कोई उम्मीद की किरण सूरज के साथ न आयेगी।जाने अब तुमसे कभी मिल भी सकूँगी या नहीं ..
देख तो ..उधर वो शाम ढल रही है।इधर मेरी जिंदगी की शाम भी….
©स्वरचित पाखी,

Language: Hindi
1 Like · 538 Views

You may also like these posts

आज़ाद थें, आज़ाद हैं,
आज़ाद थें, आज़ाद हैं,
Ahtesham Ahmad
" इकरार "
Dr. Kishan tandon kranti
नक़ली असली चेहरा
नक़ली असली चेहरा
Dr. Rajeev Jain
कहां चले गए तुम मुझे अकेला छोड़कर,
कहां चले गए तुम मुझे अकेला छोड़कर,
Jyoti Roshni
आज की शाम,
आज की शाम,
*प्रणय*
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
*प्रेम की रेल कभी भी रुकती नहीं*
*प्रेम की रेल कभी भी रुकती नहीं*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
माँ की दुआ
माँ की दुआ
Anil chobisa
कितना और बदलूं खुद को
कितना और बदलूं खुद को
इंजी. संजय श्रीवास्तव
..#कल मैने एक किताब पढ़ी
..#कल मैने एक किताब पढ़ी
Vishal Prajapati
​दग़ा भी उसने
​दग़ा भी उसने
Atul "Krishn"
- मेरा जीवन हो गया अब पूर्णत साहित्य को समर्पित -
- मेरा जीवन हो गया अब पूर्णत साहित्य को समर्पित -
bharat gehlot
कहने   वाले   कहने   से   डरते  हैं।
कहने वाले कहने से डरते हैं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पंडिताइन (लघुकथा)
पंडिताइन (लघुकथा)
Indu Singh
जुदा होते हैं लोग ऐसे भी
जुदा होते हैं लोग ऐसे भी
Dr fauzia Naseem shad
ज़मींदार
ज़मींदार
Shailendra Aseem
मिसरे जो मशहूर हो गये- राना लिधौरी
मिसरे जो मशहूर हो गये- राना लिधौरी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
Ajit Kumar "Karn"
सब ठीक है ।
सब ठीक है ।
Roopali Sharma
चाहत के ज़ख्म
चाहत के ज़ख्म
Surinder blackpen
सुना ह मेरी गाँव में तारीफ बड़ी होती हैं ।
सुना ह मेरी गाँव में तारीफ बड़ी होती हैं ।
Ashwini sharma
सुना है जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं
सुना है जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं
Sonam Puneet Dubey
दूहौ
दूहौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कब्र से उठकर आए हुए लोग,
कब्र से उठकर आए हुए लोग,
Smriti Singh
जय अम्बे
जय अम्बे
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कुल्हड़-जीवन की झलक।
कुल्हड़-जीवन की झलक।
Amber Srivastava
2648.पूर्णिका
2648.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*आया फिर से देश में, नूतन आम चुनाव (कुंडलिया)*
*आया फिर से देश में, नूतन आम चुनाव (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
दोस्तों अगर किसी का दर्द देखकर आपकी आत्मा तिलमिला रही है, तो
दोस्तों अगर किसी का दर्द देखकर आपकी आत्मा तिलमिला रही है, तो
Sunil Maheshwari
try to find
try to find
पूर्वार्थ
Loading...