“शाम की प्रतीक्षा में”
जज्बाते जिगर कैसे कहूं मैं,
कि हर शाम इंतजार करूँ मैं।
तुम आओगे, है ये तुम्हारा वादा ,
तेरे वादे का इंतजार करूँ मैं।
यही दुआ भगवान से करूं,
की शाम को फिर तेरा दीदार करूँ।
जैसे नदी को इंतजार है, समुद्र में खो जाने को,
जैसे घटा को इंतजार है, बरस जाने को।
जैसे पहाड को इंतजार है , बर्फ के बिछ जाने का,
जैसे रंग को इंतजार है,बहारों में बिखर जाने का ।
जैसे फूलों को इंतजार है ,वसन्त में जी जाने का,
वैसे हमे इंतजार है , तेरे घर आने का।
जैसे रात्रि को ,प्रातः का इंतजार,
भोर को अभिनंदन ,का इंतजार।
आस को विश्वास ,का इंतजार,
पुष्पों को मधुमास , का इंतजार।
धड़कन को चाहत का इंतजार,
बाहों को बंधन का इंतजार।
पूजा को वंदन का इंतजार,
माथे को चंदन का इंतजार।
प्रीत में समर्पण का इंतजार,
तेरे आने के आहट का इंतजार।
जाने के बाद ,आने का इंतजार,
हर शाम और सुबह का इंतजार ।
हमारी हर सांसे, और रोम रोम,
करता है बस इंतजार, इंतजार और बस इंतजार ।
जल्दी से अब आ भी जाओ घर,
अब हमेशा के लिए खत्म करो ये इंतजार ।।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज