शाम -ए -मजदूर
रह- रह कर वक्त -ए – मुहूरत निकलती है
के मालिकों को भी मजदूर से ज़रूरत निकलती है
मशला…. मानों तो अन्योन्याश्रित का ही है
पर शाम -ए – मजदूर कहाँ खूबसूरत निकलती है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
रह- रह कर वक्त -ए – मुहूरत निकलती है
के मालिकों को भी मजदूर से ज़रूरत निकलती है
मशला…. मानों तो अन्योन्याश्रित का ही है
पर शाम -ए – मजदूर कहाँ खूबसूरत निकलती है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी