शामे मेरी
जिन खिड़कियों से झांका मैं
उसके नीचे खड़ी थी गमे मेरी
जब ये आवाज मेरी ना हैं
तो कौन गा रहा है नगमे मेरी ।।
लहरों को ये यकीन हो ना हो
भले ये मुमकिन हो ना हो
जब खुद पे है इख्तियार हमें
तो कौन खा रहा है कसमें मेरी ।।
ना जिंदगी के शाम हुई ना रात
तो किसने उतार दी चश्मे मेरी
जब कोई ना आया पुरसिश लेने
तो कौन निभा रहा है रश्मे मेरी ।।
इश्क़ में शर्तें हो मगर
मनमर्जिया रिश्ते हो मगर
जब पैरों ने जवाब दे दी
तो कौन नाप रहा कदमे मेरी ।।
पंछी दिल के उड़ें तो कैसे
चींटी पैरों से सरके तो कैसे
जब हमने खोला पिंजरा नहीं
तो तोड़ दी किसने हमें मेरी।।
नितु साह