शान्ति दूत
शान्ति दूत
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आकाशगंगा में युद्ध की होड़ है।
आकृतियों के लिए।
मरने–मारने पर उतारू
एलेक्ट्रान,प्रोटान,न्यूट्रान।
सारी शक्तियाँ जूझ रही
वर्चस्व देने एक दूसरे अस्तित्व को।
क्रूरता और विध्वंस
युद्ध के पर्यायवाची।
वाण और गुलेल
खोलता जैसे सव्यसाची.
ज्यामिति हक्का-बक्का।
न ध्वंस में है न निर्माण में।
गणित अपना अस्तित्व ढूँढता।
सभ्य होने की चेष्टा करता।
पृथ्वी पर सभ्यताएं असभ्य होने को आतुर।
बुद्धिमातापूर्ण और विवेकी सृष्टि
अजेय वर पा भी हो रहा भस्मासुर।
धरती उपजा रही घृणा भूलकर फसल।
बारूद के तत्वों को अत्यंत उछल-उछल।
अतृप्त कामनाओं के कारण युद्ध
कामनाओं की अतृप्तता के कारण या?
सपनों को पीठ पर उठाए
ये निरर्थकताओं में अर्थ ढूँढ़ते क्या?
कैसी क्षुब्धता से मन का प्राण भरा है।
तन में लोभ,मोह,मद,तृष्णा क्या-क्या क्रोध भरा है।
धर्म शान्ति का दूत बने उर का अंधकार मिटाए।
कर्तव्य कर्म को प्रेरित कर अहंकार हर जाए।
वनस्पति और औषधियाँ शान्त रहें
मनुष्य की अदम्य चाह।
पृथ्वी शान्त हों, वचन अनमोल किन्तु,के लिए
मनुष्य में अप्रलक्षित है कोई उत्साह।
सारे दुर्व्यसन जानवरों के आदमी में,
आदमी खुश हुआ मिलता है।
शान्ति का एक प्रयास भी शान्त और नि:स्वार्थ
मन से
कहीं दिखता नहीं मिलता है।
व्योम से उतर आये कोई अनिवासी प्रवासी
यूं तो बहुत शोर है।
और उससे युद्ध की बातें करने का
मनुष्य में बड़ा होड़ है।
अपेक्षा शान्ति नहीं युद्ध की क्यों!
अच्छाइयों के विरुद्ध मनुष्य होता सर्वदा क्रुद्ध ही क्यों!
ब्रह्मांड के पृथ्वी नामक ग्रह पर
परास्त करने और विजय का शोर है।
आस्था,ऐश्वर्य,अस्तित्व
मिटाने के लिए
नित नए औजारों को बनाने का
प्रचालन और अध्ययन है।
शान्ति दूत देवता के प्रयास से नहीं।
मार्क्स,लेनिन,महाभारत के अवसाद से नहीं।
सौम्यता और साम्यता से।
मनुष्य तुम्हारे अंतर्मन की भव्यता,दिव्यता से।
——————————————————–26/2/24