शादी का लड्डू ( हास्य व्यंग कविता)
कहते है लोग शादी वो लड्डू है ,
जो खाए वो पछताए ,और
जो न खाए वो भी पछताए।
तो हम कहते है भाई मेरे !
इस लड्डू को खाकर पछताने से,
न खाकर पछताना ,
जायदा बेहतर है।
क्योंकि यह लड्डू ,
पहले तो रसीला और मीठा लगता है ।
दूसरे साल खट्टा मीठा,
और तीसरे साल तीखा ,
चौथे साल कड़वा और
उसके बाद सारी उम्र के लिए
गले की हड्डी बन जाता है।
नहीं खाओगे तो थोड़ा पछताओगे।
अगर खा लिया तो उम्र भर पछताओगे ।
चूंकि यह लड्डू ख्वाबों और ख्यालों ,
में ही सुहाने और रोमांचक लगते हैं।
हकीकत की जमीन पर आते ही ,
चकना चूर हो जायेंगे ।
इसीलिए इस लड्डू का स्वाद ख्वाबों में ही लो ,
इसे हकीकत में साकार मत करो।