जीवन चक्र
इस मृदुल से हयात में
कभी खुशी कभी दुखी
आते रहती सतत यहां
आज अगर हम रंक तो
कल को हो सकते शासक
अभी श्रीमंत तो कल को
हम क्षुधापीड़ित हो सकते
ये जीवन चक्र चलते रहती ।
कभी आस तो आहत
अभी खुशी तो अवसाद
किंचित संप्रति सुबोध तो
कल को हो सकती विकट
आज कोई वृहत् नैकटिक
कल को क्या पता जग में
वो हमसे हो सकती पृथक
ये जीवन चक्र चलते रहती ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार