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4 Jul 2022 · 1 min read

जीवन चक्र

इस मृदुल से हयात में
कभी खुशी कभी दुखी
आते रहती सतत यहां
आज अगर हम रंक तो
कल को हो सकते शासक
अभी श्रीमंत तो कल को
हम क्षुधापीड़ित हो सकते
ये जीवन चक्र चलते रहती ।

कभी आस तो आहत
अभी खुशी तो अवसाद
किंचित संप्रति सुबोध तो
कल को हो सकती विकट
आज कोई वृहत् नैकटिक
कल को क्या पता जग में
वो हमसे हो सकती पृथक
ये जीवन चक्र चलते रहती ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

Language: Hindi
1 Like · 626 Views

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