शादी और साली
सर पर सेहरा बांध के मेरे, मंद मंद मुस्कानते हो।
सारी चिंता सौंप के मुझको, बड़े चैन से जाते हो।।
हंसी नहीं रुकती हैं अब तो, बहुत ही तुम इतराते हो।
कुछ तो भेद खोल दो मुझसे, कहां छुपाए जाते हो।।
बिल्कुल भी नहीं दया हैं आती, इतने निष्ठुर हो जाते हो।
कुछ भी नहीं मानते मुझको, ऐसा क्यों दिखलाते हो।।
माना वो हैं बिल्कुल तेरी, हम भी तो कुछ लगते हैं।
देते रहे दुआएं तुमको, साजिश ना हम रचते हैं।।
बोलो कुछ तो मुंह को खोलो, बड़ा भरोसा रखते हैं।
नहीं कभी भी आच आएगी, वादा हम ये करते हैं।।
खुशहाल गृहस्थी मेरी भी हो, तुम भी तो यही कामना करते हो।
नब्ज मुझे कुछ बतलाओ उसकी, या बस मंगलकामना करते हो।।
उम्मीद तुम्ही से मेरी हैं बस, और ना कोई रास्ता हैं।
बंद करोगे अंतिम रास्ता, यही मुझे अब लगता हैं।।
ललकार भारद्वाज