शादी ….. एक सोच
शादी… एक सोच ************** शादी तो संसार हैं। आज व्यापार हैं। बेटी का घर पराया हैं। बेटा बेटी भेद भाव हैं। शादी तो दो जिस्म हैं। कागज के टुकड़े पर रिश्ते हैं। शादी तो एक खेल हैं। प्रेम में शादी कहा है। शादी तो एक बंधन हैं। बस कुछ समय जिस्म हैं। शादी तो मां बाप का वादा हैं। सुख दुःख न शादी होती हैं। आज आधुनिक हम हैं। शादी आज एक सोच हैं। आओ शादी को समझते हैं। एक दूसरे से प्रेम करते हैं। शादी के बाद निभाते हैं। सच मीरा राधा हम होते हैं। शादी शाम दीदार होती हैं। बस शब्दों की महिमा होती हैं। शादी तो संसारिक नियम हैं। आओ शादी को बदलते हैं। शादी ….एक सोच होती हैं । ******************** नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र