शादियों में फिजूलखर्ची क्यों?
आज के इस समय में जीवन में खुशिया कम हे ,दिखावा ज्यादा हे।और सबसे ज्यादा दिखावा शादियों में होता हे।एक व्यक्ति जिसकी मासिक आय दस हजार के आसपास हे,जो बड़ी मुश्किल से अपना परिवार चला पा रहा हे,वो व्यक्ति अपने लड़के या लड़की की शादी में चार पाँच लाख रूपये तक खर्च कर देता हे।हर चीज में दिखावा ज्यादा होती हे और अपने पडोसी या रिश्तेदार की बराबरी का दिखावा।
शादियों मे अजीबोग़रीब चलन चल पड़ा हे ,ढोल भी करते हे,बैंड भी और डी जे भी।जबकि तीनो की उपयोगिता एक ही कार्य के लिए हे।दूल्हे दुल्हन के कपड़ो पर हजारों रूपये खर्च कर दिए जाते हे जबकि शादी के बाद वो कपडे पूरे जीवन भर दोबारा पहने जाने का इन्तजार करते रहते हे और आउट ऑफ़ फैशन हो जाते है।
शादी की रसोई में खाने की बहुत बर्बादी होती हे ,बहुत से व्यंजन तो केवल व्यंजनों की संख्या बढ़ाने के लिए ही बनाये जाते हे और हर शादी में कम से कम बीस प्रतिशत खाने की बर्बादी होती हे,वो भी उस देश में जिसमे लाखो लोग भूखे सोते हो।
शादियों में जो सोने चांदी के गहने खरीदे जाते हे उनकी सामान्य जीवन में उपयोगिता बहुत ही कम होती हे।और ये सोने चांदी के गहने सिर्फ रिश्तेदारो को बताने और वाही वाही करवाने के ही काम आते है।
एक मध्यमवर्गीय परिवार अपनी कई वर्षो की बचत को शादी में लगा देता है या फिर घर का मुखिया शादी के बाद कई वर्षों तक उधारी चुकाता रहता हे।ये बहुत विचारणीय प्रश्न हे कि शादियों में इतना दिखावा और पैसों की बर्बादी क्यों?