शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों
शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों
दिल कहता है ज़िंदगी- ज़िंदगी सी है इन दिनों
कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे
बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
दिल की गहराइयों में कुछ टूटा तो ज़रूर है
हर बात मिरी शायरी- शायरी सी है इन दिनों
जैसे तो यहीं पर मुस्तक़िल रिहाइश कर ली है
यूँ लबोंपे तबस्सुम खिली- खिली सी है इन दिनों
इधर सज़्दे में सर झुका उधर वो तड़प उठठा
यूँ लगता है बंदगी- बंदगी सी है इन दिनों
बना ले घर ए परिंदे गम के सूखे तिनकों से
कुछ ज़माने की हवा रुकी- रुकी सी है इन दिनों
सही कौन है जहाँ में और ग़लत कौन नहीं है
इन्हीं सवालों में ‘सरु’ घिरी-घिरी सी है इन दिनों