शह्र के शह्र हो गए पत्थर!
शह्र के शह्र हो गए पत्थर।
अब तो कोई नहीं यहाँ रहबर।
हू ब हू चेहरा हिरे सा था,
और जैसे जड़ा हो सोने पर।
हिज़्र का ख्याल जो मुझे आया,
था बहुँत खौफनाक वो मंजर।
और तारीफ मैं करूँ कितना,
रूह से भी रहा संगेमरमर।
फ़िक्र जिनकी मुझे रही हरदम,
भूलते हैं मुझे वही अक्सर।
इक रज़ा दे नहीं सकी दुनिया,
जिंदगी भर देती रही ठोकर।
क्या कहा था शुभम् इन्हें तुमने,
पड़ गए पीछे हाँथ जो धोकर।