शहीद
अरे, पगली रोती क्यों?
मैं तो तेरे पास खड़ा।
तेरे सांसों में बसा में,
जिन्दा हू तेरे यादों में,
पहले तो दुर रहता भी था,
पर अब हर घड़ी तेरे पास हु मैं।
देख आंसु ना बहा,
ठेस पहुंचाती है मेरे दिल को।
तुम्हें कहां छोड़ा , छोड़ा तो मैंने जग को है,
फिर तु रो क्यों रही?
मैं बिना अमृत पाये,
अमर हुआ,
और छोड़ रीति इस जग कि,
अपने मां कि आंगन में खेल रहा।
क्या इतनी खुदगर्ज तु,
जो शोक मना रही इस बात का?
देख मैं अम्बर का वह तारा,
कितनी ऊंचा पद मेरा अब,
क्या तु खुश नहीं,
मेरी पदोन्नति से?
देख रो के नहीं,
हंस के कर तु मुझे विदा।
वस्त्र पहन तु आज मेरी पसंद कि,
भोजन भी हो मेरी पसंद कि,
मेरे जलते चिता के सामने,
तू आना सोलह श्रृंगार करके।
तु रो नहीं पगली,
कमजोर हो जाउंगा मैं।