शहीद की पत्नी
शहीद की पत्नी
हाथों में कंगन बिखर गई
माथे की बिंदिया उतर गई
बहते नीर नयनो से थिरकते
चहरे से मुस्कान उतर गई ।
इंतजार में पलके बिछती थी
ख्वाबों में प्रीत महकती थी
कब आए मेरे प्रियवर ,,,
मिलने को बांहे तरसती थी ।
कब आएंगे मुनियाँ के पापा
जो लेकर गोदी में सुलाएगे
खेलते रहे स्वयं बारूदों में
होली में रंगों से हमे खिलाएगे।
उड़ गए अब वो चीथड़ों में
लदा कफन पर लाल रँगा,
मेरे बच्चे सदा अमर रहना
पुकारे भारती लहराए तिरंगा ।
??✍प्रवीण शर्मा ताल