शहीद का गृह प्रवेश (कविता)
तिरंगे की चूनर ओढ़े बनकर ऐसे शहजादे आये हो।
घर के चहके आँगन में मातम पुष्प सजाने आये हो।
पत्नी संवाद
भूल गये तुम मेरे गुलाबी होंठों की लाली
भूल गये तुम नीली, हरी मेरी लाल साड़ी
भूल गये तुम मेरे सुरमयी आँखों का काजल
भूल गये तुम कहाँ मेरे कानों की वाली
भूल गये तुम कहाँ मेरे हाथों के कंगन
भूल गये तुम कहाँ मेरी पायल की छनछन
भूल गये तुम कहाँ मेरे माथे की बिंदिया
भूल गये तुम कहाँ मेरे पैरों के बिछिया
रणभूमि में तुम मेरी सुहाग निशानी छोड़ आये हो।।
घर के चहके……………………………………………..।
शहीद संवाद
तेरी सुहाग निशानी लेकर मैं घर आने वाला था
लाल चूडी, साड़ी, बिन्दी से भाल सजाने वाला था
तेरे पैरों की छनछन करती पायल लेकर आने वाला था
तेरी कलाई में अपने नाम की चूड़ी खनकाने वाला था
राहों में मिल गई मुझको रोती दुल्हन सी भारत की भूमि
मैंने अपनी भारत की धरा से प्यार का इजहार कर डाला
दुश्मन की गोलियों की बौछारों ने मेरा सीना छलनी कर डाला
मुझे माफ करना प्रिय मैंने तुमसे किये सारे वादेे भुलाये है।।
वतन के खातिर प्रिय मैंने अग्नि के सातों वचन भूलाये है।।
इसलिये अपने ही आंगन में हम शहीद शहजादे बनकर आये है।।
तिरंगे की चूनर ओढ़कर आज हम शहीद शहजादे कहलाये हैं।।
मातृ-पितृ संवाद
करके गया था तू वादा मैं फिर लौटकर आऊँगा।
आकर तुमको मैं सारे मंगल तीर्थ कराने जाऊँगा।
ले जाँऊगा तुमकों कराने हरिद्वार, मथुरा, काशी दर्शन
बनकर श्रवण कुमार मैं अपने दायित्व सभी निभाऊँगा।
बहुत काँपे थे पिछली दफा जाड़ो की ठण्ड से थरथर
अबकी जाड़ो में तुमको गर्म मोटी मैं शाल दिलाऊँगा।
भूल गये तुम क्यों तीरथ ले जाने का वादा
श्रवण सा पुत्र बनकर लौट आने का वादा
भूल गये तुम क्यों हमारी गोदी की तुम गर्माहट
भूल गये तुम क्यों माँ की ममता भरी सी आहट
रणभूमि में तुम हमारे बेटे के आदर्श छोड़ आये हो।।
घर के चहके……………………………………………..।
शहीद संवाद
पूरा करने अपना वादा मैं घर को आनेे वाला था
तीरथ घुमाने के इरादे लेकर मैं घर आने वाला था
मैं ला रहा था तुम्हारे लिए ऊँन की मोटी शाॅल
मैं अपने पुत्र धर्म को आज निभाने आने वाला था
राह में मिल गई रोती बिलखती मुझे अपनी भारत माता
मैंने उसके आगे अपना नतमस्तक सीस छुका दिया
बहुत भारी कर्ज था उसका मुझ पर मैंने चुका दिया
अपनी भारत माँ के दामन से सारे दाग आज मिटाये है।।
वतन की खातिर अम्मा-वावा अपने मैंने प्राण गवांये है।।
इसलिये अपने ही आंगन में हम शहीद शहजादे बनकर आये है।।
तिरंगे की चूनर ओढ़कर आज हम शहीद शहजादे कहलाये हैं।।
बाल संवाद
करके गये थे वादा तुम लेकर खेल खिलौने आऊँगा
अबकी दिवाली तुम्हारे साथ पटाखे दीप जलाऊँगा
अनार की तेज रोशनी में संग राकेट मैं छुड़ाऊँगा
करके गये थे वादे गुड़िया की लेकर गुड़िया आऊँगा।।
भूल गये क्यों खिलौने लाने का तुम अपना वादा
दीवाली में पटाखें संग जलाने का तुम अपना वादा
भूले गये क्यो तुम पापा हमारी तोतली सी आवाजों को
भूल गये क्यों तुम हमें मेला दिखाने का तुम अपना वादा
रण भूमि में हमारे पापा का कहाँ दुलार छोड़ आये हो।।
घर के चहके……………………………………………..।
शहीद संवाद
मैं दिवाली पर इस दफा घर आने ही वाला था
लेकर पटाखों को तुम संग दीप जलाने ही वाला था
मैं लेकर आ रहा था अपनी गड़िया की गुड़िया
अपने पितृ धर्म को निभाने मैं आज आने ही वाला था
राह में मिल गया कुछ बच्चों का बचपन खून से लतपत
मैंने अपना दुलार उन बच्चों पर सारा लुटा दिया
मैंने उन बच्चों को जीने का अधिकार दिला दिया
मैंने अपने भारत के भविष्य कुछ भावी पौधें बचाये हैं।।
मुझे माफ करना अपने पितृ धर्म के आदर्श भुलाये हैं।।
इसलिये अपने ही आंगन में हम शहीद शहजादे बनकर आये है।।
तिरंगे की चूनर ओढ़कर आज हम शहीद शहजादे कहलाये हैं।।
बहन संवाद
करके गये थे वादा तुम मैं अबकी राखी बन्धन पर आऊँगा।
वैशाखी पर आकर बहना संग साथ तेरे लोहड़ी मैं मनाऊँगा।।
भाई दूज पर आकर तेरे हाथों से गोला मिश्री मैं खाऊँगा।।
करके गये थे वादा मैं बहना तेरी शादी का लाल जोड़ा लाऊँगा।।
भूल गयेे तुम भइया क्यों अबकी राखी पर आना
भूल गये तुम भइया क्यों अबकी वैशाखी पर आना
भूल गये तुम भइया क्यों अबकी भाई दूज पर आना
भूल गये तुम भइया क्यों तुम मेरी शादी की चूनर लाना
रण भूमि में मेरे भइया की कहाँ प्रीत छोड़ आये हो।।
घर के चहके……………………………………………..।
शहीद संवाद
मैं बहना तेरी शादी की लाल चूँनर लेकर घर आने वाला था
लोहड़ी में खेत खलिहानों मेें फिर धमाचैकड़ी मचाने वाला था
खींच रही थी तेरी भाईदूज की मिठाई मुझको तेरी ओर बहना
मैं अबकी अपनी सूनी कलाई पर राखी बँधवाने आने वाला था
राह में मिल गई मुझको कुछ बहने जालिमों की कैद में कैद
मैंने उन बहनों को जिल्लत की जिन्दगी से आजाद करा दिया
मैंने मायूस चेहरों पर फिर से मुस्कान को आवाद करा दिया
मैंने राखी बाँधने वाले आज बहुत से बहना हाथ बचाये है।
मुझको माफ करना मैंने तेरी राखी के सारे बंधन भुलाये है।
इसलिये अपने ही आंगन में हम शहीद शहजादे बनकर आये है।।
तिरंगे की चूनर ओढ़कर आज हम शहीद शहजादे कहलाये हैं।।
गंगाधर मोहित शर्मा स्वतन्त्र गंगाधर’’