शहीदे आज़म भगत सिंह
शहीदे आज़म – भगत सिंह
आओ याद करें आज़ादी के दीवानों को,
आओ याद करें उन जिंदादिल इंसानों को,
मिट्टी की खातिर जो गुरूब हुए,
आओ याद करें उन बड़े कलेजे वालों को..
27 सितम्बर को जन्मे शहीदे आज़म सन 1907 का साल था…
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
पैदा हुआ जो अंग्रेजों की बरबादी के लिए,
स्वतंत्रता को दुल्हन माना शादी के लिए,
भगत सिंह उनमें से एक थे, ज़िन्दगी जिनकी वक्फ बन गई,
हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए..
लड़ाई पेट की भूख की नहीं, राज्य सता का सवाल था…
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
जिसने पूरे दिलो-जाँ से मिट्टी चाही,
हिंद आज़ाद करने में भूमिका अहम् निभाई,
मिले कुछ ऐसे खरीददार अंग्रेजों को,
उनकी बसी बसाई दुकानदारी उखड़ती नज़र आई…
अगर गाँधी जी जीने की कला में अव्वल थे,
तो इनका मरने की कला में धमाल था,
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
प्यासा ही कीमत जान सकता है पानी की,
पूजा शहीदे आज़म ने धरती माँ को न इबादत की भवानी की,
हर शख्स जानता है की क्या होती है यौवन की लहर,
पर इन्होंने मौजें कुर्बान की जवानी की..
देश की खातिर बाल कटवाना तो क्या,
गर्दन कटवाने के लिए भी तैयार था…
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
भगत सिंह और दत्ता का मकसद हिंसा नहीं अहिंसा से जीत जाना था,
बम फेंकना अंग्रेज़ी हुकूमत को भागना था,
बहरों को कहाँ सुनाई देते बम के धमाके,
ये सब तो भैंस के आगे बीन बजाना था..
जेल की कोठरी भी पुस्तकालय बन गया,
यह सच में बेमिसाल था…
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
शहीदे-आज़म की दीवानगी देख अंग्रेज़ भी सिहर गए,
मांसाहारी अंग्रेज़ हिंदुस्तान आदिम को चारा समझ चर गए,
अभी तो आये ही कहाँ थे ज़िन्दगी शुरुआत करने के दिन,
वक्त से पहले ही ये ज़िन्दगी मौत के हवाले कर गए..
सनसनाती हवाओं ने बयां किया कि खुदगर्जों के दिल में मलाल था…
एक अजब जुनून था शहीदे आज़म में,
बचपन से ही उनके खून में उबाल था…
सरदार भगत सिंह की जीवनी सुन्दरता की एक मूरत है,
उनके जीवन का हर पहलू कबूलसूरत है,
इरादा पक्का हो तो मिल जाती है मंजिलें,
भ्रष्टाचार, आतंकवाद मिटाने के लिए,
आज भी एक शहीदे आज़म की ज़रुरत है…..
कवि:- सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)