शहादत साहिबजादों की।
सिरसा नदी के किनारे,
गुरुद्वारा बीछोड़ा साहिब जी;
यही वह स्थान जहां बिछड़ा,
परिवार मेरे साहिब का जी।
जब हुए होंगे सब जुदा,
मां का हुआ होगा क्या हाल जी;
क्या बीती होगी मां के दिल पर,
जिसने खो दिये चारों लाल (पुत्र)जी।
कैसे ठंडी हवा होगी चल रही,
ठंडे बुर्ज में वो कौन कांप रही;
कैसे बीती होगी रात सोचना,
दादी गुजरी के साथ गोविंद के लाल जी।
नींव में शहीद होने को तयार,
माता सुंदरी के नन्हें लाल जी;
फतेह सिंह और ज़ोरावर सिंह ने,
कर दिया कमाल जी।
दशमेश पिता के बड़े लाल,
साहिबजादे अजीत और जुझार जी;
शहादत को लख लाख बार नमन,
मान बढ़ा, कर गए पंथ की जीत जी।
कुलदीप कौर “दीप”