शहर से बड़े बादल
शहर से बड़े बादल
उपर आसमान से उड़ते वक़्त
नीचे शहर चीटियों सा रेंगता दिखता है
और बादल विशाल समंदर सा
समूहों में गुथा गुथा ।
लगता है अनन्त खलाओं में
बादलों ने क़ब्ज़ा कर रखा है।
उनकी मिल्कियत के आगे
नीचे का शहर बौना दिखता है।
ये मस्त मौला हाथियों के समूह हैं
अपनी धुन में हवा के रूख पे सवार
दुनिया से बेख़बर अपनी दुनिया में ।
उनकी नज़र से देखो तो
हमारे बनाए नदी नाले
जिसके भरोसे हम विकास
और माडर्न ड्रेनेज सिस्टम
का झूठा हवाला देते है
बिलकुल सफ़ेद झूठ है।
दोनो के बीच कोई सामंजस्य
या पर्याप्तता नहीं दिखता
हाँ इनके बीच एक
मौन समझौता है
अनकही वादों की डोरें बंधी है
एक अदृश्य मरासिम के हवाले से
बादलों ने हमेशा
निभाये है वो सारे एग्रीमैंट
अपने समय पे आना है
मौसम अनुसार जितना चाहो
बिना माँगे बौछार कर जाना है
जल ही जीवन है और
शुद्धता की विशुद्ध गारंटी
पर क्या करे हम इंसान है
दुनिया के सबसे विचित्र जानवर
जिनपे भरोसा करना ………….?
वादों के डोरों में असंख्य धागे थे
हर एक ने समय समय पे नोचा
एक एक धागा ग़ुब्बारे में लगा उड़ाया
बादलों ने बहुत धीरज दिखाया
वो बादल जो वादों के डोर से जुड़े थे
बिखरने लगे सब्र की दीवारों में दरार आ गयी।
वो भी क्या करे
ढहती दीवार का संतुलन
कहाँ सँभलता है ।
जिस शहर ने जितनी डोरें
तोड़ी हैं उतना ही भुगतना है।
चाहे चेन्नई हो या मुंबई
या फिर पूरा झारखंड
ना जाने कब पूरे भारत
की बारी आ जाए।
इस खेल में डोर तोड़ना आसान है
फिर गाँठे लगाना भी मुश्किल।
ये मरासिम है
कोई आँत की नाड़ी नहीं
यहाँ काटा वहाँ जोड़ा
दर्द और प्यार के रिश्ते हैं
ज़रा सँभल के दोस्त,खीचों मत
सामंजस्य रखो एतमाद का मामला है
ना जाने कब तुम्हारा शहर
करबला बन जाए और तुम यज़ीद ।
एतमाद=विश्वास
करबला=शहर जिसका पानी रोका गया
यज़ीद= पानी रोकने वाला जिसने करबला को जलरहित
कर दिया था।
यतीश २९/१०/२०१७